Tuesday 27 July 2010

हिंदी के प्रभाव से बिलुप्त प्यारे शब्द ......

हमारी भाषा हिंदी भाषा से बहुत ही प्रभावित है खुसी भी होती है जब गाँव की ताऊ ताया टूटी फूटी हिंदी बोल के अपनी बात का प्रभाव ज़माने की कोशिस करते है तो बहुत ही अच्छा लगता है
और हाँ एक शब्द है "बल" कोई हिंदी बोले या गढ़वालीजब तक ये शब्द नहीं जोड़ते वाक्य पूरा नहीं होता ये गढ़वाली भाषा का बहुत मुख्या शब्द है हर वाक्य से पहले या बाद में "बल" नहीं लगाया तो गढ़वाली भाषा पूरी नहीं होती
कुछ गढ़वाली शब्द जिनके मुह से निकलते ही शारीर में झर झरी सी दोड़ जाती है ---

"तू"
घर , गाँव, मोहल्ले का कोई भी रिश्ता हो, कोई कितना भी बृध, कोई कितना भी बच्चा हो "तू" कहा कर पुकारते ही सारी दूरियां पल में ही सिमट जाती है दिल में एक अजीव सा अपना पन उभर आता है बहुत ही कर्ण प्रिय और भावुक शब्द हैं .....
" हला बाबा तू मैतेन पेंसिल नी लायें आज
माँ-ली तू खाणु नी दयानी मैतेन मैं बिजान भूका लगीं ,मैं अफ़ी गाड़ी दयां हां "
जब बचपन के ये मासूम से वाक्य आज भी मानस पटल पर उभरते हें तो इनकी आवाज मुझे दूर कहीं दूर से भी लाके घर के आँगन में पटक देती हें ....!!!!

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