Sunday 3 July 2011

उ बोड़ा कु खल्याँण .....!

गौं का छोरों कू
छोट्टा बड़ों कू
दाना सयाणों कू
रोज व्यखानी धां
बस एक ही छा काम
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |

रूड्यों का दिनु मा
चा ठंडी हवा खाण
या ह्युंद का दिनु मा
घाम तापण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |

कोणा पक़ड़यां छा
सबु का अपरा
होड़ मचीं छा
अपरी जगा खुजाण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |

बुड्यों की लगणी छा
गोरु, भैंसों की सैदा
बुड्डी व्हेगें सुरु
सासु ब्वारियों की कथा सुनाण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |

नोन्यों की थूचा
अर छोरों की गुच्छी
थौल जुड्यूं छा
बोड़ा का ख्ल्याण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |

रचनाकार : धर्म सिंह कठैत (अजनबी)
ग्राम छडियारा
खास पट्टी टिहरी गढ़वाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित 03/7/2011)

Friday 27 May 2011

फोजी दीदा ....

जुकड़ी माँ आज मेरु
उक्ल्याट होणु छा ..
छोटू भुला फोजी मेरु
घर आणू छा ..
अजी दारू की कुछ
बोतल ही नी भाई
पूरी पेट्टी लाणू छा ..
पठोली की खोह्ज व्हेगी
खन्तु दीदा यख ..
रैबार पोचण लगेन
धारू-धारु बाटीन
एक बोतल मितें धरी दे
धरमु दीदा बस
६ गति बैसाख बाखरी
मानु कु दिन व्हेगे
अर माल्डा का थोल माँ पि
तें जाणों कु तय व्हेगे ..
अर माल्डा का थोल माँ पि
तें जाणों कु तय व्हेगे .....