Tuesday 31 August 2010

वो मंडूये की रोटी का स्वाद ....

आज आपके साथ मैं जो बाँटने जा रहा हूँ बहुत प्यारा विषय है । यूँ तो हमारा पहाड़ हमारा गढ़वाल की दुनिया एक अलग दुनिया है वहां हर चीज अलग है वहां का समाज अलग है वहां की सोच अलग है ।
दुनिया आगे निकल गई है या हम पीछे छूट गए है लेकिन हम जहाँ है जीवन की असुविधाएं तो हैं पर अपार आनंद भी है
कभी कभी मनसोचता है की हम पीछे नहीं छूटे दुनियां भटक गयी है मृग तृष्णा में .... या कुछ और ......
माँ के हाथ की चूले में बनायीं वो मंडूये की रोटी का स्वाद आज भी मुह में बरकरार है ताज़ी खाओ तो किसी पॉँच सितारा होटल की महँगी से महँगी मुफ्फिन से कम नहीं और रात भर टोकरे (ठोफरे) में सूख के सुबह चाय के साथ खाओ तो किसी चोकोलेट बिस्कुट से कम नहीं ....


हां ये बात बताना तो भूल ही गया है हम लोग गर्मियों में सुबह नास्ता और दिन में लंच करते हैं किन्तु सर्दियों में बिलकुल अलग ही रिवाज है सुबह उठते ही खाना बनना सुरु हो जाता है.. दाल - भात ,सब्जी पूरा खाना खा के ही लोग घरों से काम के लिए निकलते हैं सर्दियों में दिन में धूप कम होती है तो खेत में काम ३-४ बजे तक आराम से कर सकते है और फिर दोपहर में चाय के साथ नास्ता होता है ...... मजेदार . कभी आलू और अरबी के छोले तो कभी चटनी के साथ मंडूये की रोटी .....क्या स्वाद कभी ना भूलने वाला ..


जब माँ पुदीने, प्याज, और अंगारों में भुने हुए बारीक टमाटरों की चटनी मंदुये की रोटी में रख के देती थी तो ३-४ बार की चटनी ख़तम हो जाती थी पर मन नहीं भरता था .....




10 comments:

  1. आनन्द आ गया..क्या क्या न याद आया,

    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये

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  2. आपकी पोस्ट ने तो व्रत के दिन भी जी ललचा दिया :)
    आपको सपरिवार श्री कृष्णा जन्माष्टमी की शुभकामना ..!!
    बड़ा नटखट है रे .........रानीविशाल
    जय श्री कृष्णा

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  3. वाह ....कभी मिले खाने का मौका ...


    जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

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  4. वाह आपकी पोस्ट पढकर तो मुंह में पानी आरहा है. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. भाई मंडुये की रोटी कैसे बनती है? और ये मंडुआ होता क्या है? कृपया बताये तो मेहरवानी होगी.

    रामराम.

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  6. किसी वक्त मडुवे कि रोटी पहाड़ में आम लोगों का मुख्य आहार थी पर अब इसका प्रचलन कम हो गया है. अभी कुछ दिनों पहले ही मैं अपने गाँव गया था. वहा मैंने मडुवे कि रोटी खानी चाही पर अफ़सोस कहीं भी मडुवे का आटा नहीं मिल पाया. मडुवा एक बेहद पोस्टिक आहार है पर शायद इसकी खेती कम कर दी गयी है. धर्म सिंह जी लेख बढ़िया है और चित्र बहुत सुन्दर. मडुवे का स्वाद याद आ गया. धन्यवाद.

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  7. गढ़वाली जीवन पर आधारित आपका ये ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा!!! लेख पढ़कर बहुत आनंद आया!! ऐसे ब्लॉग, ब्लॉगिंग के नए रूप को सामने लाते हैं और वेशभूषा, खानपान, जीवन शैली के बारे में जो जानकारी प्रदान करते हैं वो अमूल्य होती हैं!! मैं आशा करूँगा कि आप गढ़वाल पर अधिक से अधिक लिखेंगे

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  8. वाह जी
    रोटी देखकर ही मन ललचा गया मदुये का आटा कैसा तैयार होता है ?
    मुझे तो अलग अलग अनाज की रोटी खाना अच्छा लगता है |
    बहुत सुन्दर चित्रों के साथ वर्णन |
    पहाड़ी और ग्रामीण जीवन के बारे में जानना अच्छा लगता है |

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