दुनिया आगे निकल गई है या हम पीछे छूट गए है लेकिन हम जहाँ है जीवन की असुविधाएं तो हैं पर अपार आनंद भी है
कभी कभी मनसोचता है की हम पीछे नहीं छूटे दुनियां भटक गयी है मृग तृष्णा में .... या कुछ और ......
माँ के हाथ की चूले में बनायीं वो मंडूये की रोटी का स्वाद आज भी मुह में बरकरार है ताज़ी खाओ तो किसी पॉँच सितारा होटल की महँगी से महँगी मुफ्फिन से कम नहीं और रात भर टोकरे (ठोफरे) में सूख के सुबह चाय के साथ खाओ तो किसी चोकोलेट बिस्कुट से कम नहीं ....

हां ये बात बताना तो भूल ही गया है हम लोग गर्मियों में सुबह नास्ता और दिन में लंच करते हैं किन्तु सर्दियों में बिलकुल अलग ही रिवाज है सुबह उठते ही खाना बनना सुरु हो जाता है.. दाल - भात ,सब्जी पूरा खाना खा के ही लोग घरों से काम के लिए निकलते हैं सर्दियों में दिन में धूप कम होती है तो खेत में काम ३-४ बजे तक आराम से कर सकते है और फिर दोपहर में चाय के साथ नास्ता होता है ...... मजेदार . कभी आलू और अरबी के छोले तो कभी चटनी के साथ मंडूये की रोटी .....क्या स्वाद कभी ना भूलने वाला ..