गौं का छोरों कू
छोट्टा बड़ों कू
दाना सयाणों कू
रोज व्यखानी धां
बस एक ही छा काम
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |
रूड्यों का दिनु मा
चा ठंडी हवा खाण
या ह्युंद का दिनु मा
घाम तापण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |
कोणा पक़ड़यां छा
सबु का अपरा
होड़ मचीं छा
अपरी जगा खुजाण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |
बुड्यों की लगणी छा
गोरु, भैंसों की सैदा
बुड्डी व्हेगें सुरु
सासु ब्वारियों की कथा सुनाण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |
नोन्यों की थूचा
अर छोरों की गुच्छी
थौल जुड्यूं छा
बोड़ा का ख्ल्याण
बोड़ा का ख्ल्याण मा सबुन ही जाण |
रचनाकार : धर्म सिंह कठैत (अजनबी)
ग्राम छडियारा
खास पट्टी टिहरी गढ़वाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित 03/7/2011)
achchi kavita
ReplyDeletebadhai
बहुत सुन्दर सृजन, आभार.
Deleteमेरे ब्लॉग " meri kavitayen" की नवीनतम प्रविष्टि पर आप सादर आमंत्रित हैं.
nice <<< keep it up,... dear
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